यहाँ है भगवान् शिव की गुफा  - True story of Koteshwar Temple Rudraprayag -Skmystic Blogs

यहाँ है भगवान् शिव की गुफा - True story of Koteshwar Temple Rudraprayag -Skmystic Blogs

Koteshwar Mahadev Temple

कोटेश्वर मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में स्थित भगवन शिव का अनोखा मंदिर है , अलकनंदा नदी के तट पर बसा ये बेहद खूबसूरत मंदिर श्रद्धालुओं और पर्यटकों का आकर्षण का केंद्र है।  जब भी आप केदारनाथ या बद्रीनाथ जाते हो तो रुद्रप्रयाग से हो कर गुजरना होता है , रुद्रप्रयाग से पहले आपको माँ धरी देवी का मंदिर दिखाई देता है अगर आपको धारी देवी के इतिहास (history of dhari devi )के बारे में जानना है तो इस लिंक पर क्लिक कीजिये , जैसे ही धारी देवी के बाद आप रुद्रप्रयाग पहुँचते है तो आपको वह से तीन किलोमीटर की दूरी पर कोटेश्वर महादेव का यह मंदिर मिलेगा।  यहाँ मंदिर बाद में बनाया गया दर असल यहाँ एक गुफा है जिसका सम्बन्ध सीधा भगवन शिव से है और इस गुफा को संरक्षण देने के लिए यहाँ मंदिर बनाया गया।  दो पहाड़ियों के बीच से यहाँ अलकनंदा नदी आती है और नदी के तट पर यह गुफा स्थित है और कुछ सीडिया चढ़कर मंदिर है और उस मंदिर में पुजारी और महंत लोगो का निवास स्थान है , जो पिछले दशकों से इस मंदिर की देख रेख और इसका संरक्षण करते है , जब स्कमिटिक यहाँ पहुंचा तो यहाँ के महंत जी से कोटेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास जान ने की  इच्छा जताई और उन्होंने पूरा इतिहास हमारे सामने उड़ेल कर रख दिया तो चलिए जानते है कोटेश्वर मंदिर का इतिहास। 

History of Koteshwar Temple in Hindi 

वैसे तो मंदिर के बारे में जो प्रसिद्ध कथा  है  वो यह है की  यहाँ भस्मासुर से बचने के लिए भगवन शंकर यहाँ आये और अपने त्रिशूल से उन्होंने गुफा बनाई और यहाँ ध्यान मग्न हो गए और जब खतरा टला तब उन्होंने अपना ध्यान तोडा लेकिन जब महंत जी से बात की तो उन्होंने बताया की ऐसी कोई कथा हमारे  पुराणों में नहीं है , जो कथा हमारे पुराणों में है वो आपको में आज इस ब्लॉग के माध्यम से बताता हु।  

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कथा कुछ इस प्रकार है की एक बार ब्रह्म राक्षसों के कुल समाप्ति की कगार पर था तब उन राक्षसों ने भगवन शिव की घोर आराधना की भगवान्   शंकर ने उनकी तपस्या से खुश  हो कर उनको वरदान मांगने को  कहा , तब उन राक्षसों ने भगवन शिव से दो वरदान मांगे पहला की हमे  राक्षस योनि से मुक्त कर दीजिये और दूसरा  जब हम राक्षस योनि से मुक्त हो जायेंगे तो हमारा नाम लेने वाला कोई नहीं होगा तो ऐसा कुछ वरदान दीजिये की भविष्य में हमारा नाम सम्मान के साथ कथाओ में आये।  तब भगवन शंकर ने खुश होकर उनको वरदान दिया और यहाँ एक गुफा बनाई

history of koteshwar temple in hindi

और उनको कहा की आज से में इस गुफा में शिवलिंग स्वरुप में प्रवेश कर रहा हु और इसमें आपको में साथ के कर के चलूँगा और जोड़ कर के चलूँगा , जितने राक्षस से उतने यहाँ शिलिंग स्थापित हुए राक्षसों की संख्या करोडो में थी इसीलिए करोडो शिवलिंग पूरे पर्वत में स्थापित हुए तभी से इस जगह का नाम कोटेश्वर पड़ा।  भगवन शिव ने उनके नाम को प्रचारित करने का वादा किया , और कहा जो भी भविष्य में इस गुफा में आकर अपनी इच्छा मांगेगा उसकी सभी इच्छा तुम्हारे नाम से पूरी होगी, दोस्तों ये कथा स्कन्द पुराण में लिखी हुई है जैसा महंत जी ने हमें बताया |

तो एक तरह से भगवन शंकर ने करोडो राक्षसों का यहाँ उद्धार किया और उनको मोक्ष दिलवाया , यहाँ पर गंगा नदी उत्तरवाहिनी है जिस वजह से कोटेश्वर महादेव एक बहोत बड़ा तीर्थ बन गया।

एक अन्य कथा के अनुसार 

यह जगह महाभारत काल से भी जुडी हुई है , महाभारत में उल्लेख है की पांडव अपने पितृ हत्या और कुल हत्या के पाप का प्रयायस्चित करने भगवान्  शिव को ढूंढ़ने हिमालय की ओर निकले थे तब भगवन शंकर उनसे मिलना नहीं चाहते थे क्युकी उनसे वो नाराज थे तो पांडव जहा भी जाते शिव वह से छिप जाते तो जब पांडव यहाँ तक पहुंचे तो भगवन शिव इस गुफा में आकर छिप गए ताकि पांडव उनको न देख सके  , यहाँ पर उन्होंने हिरन का रूप धारण कर लिया था जिस वजह से इस जगह को काखड़ पाली (पहाड़ी में हिरन को काखड़ कहते है )के नाम से जाना जाता है।  और इस जगह के बाद ही भगवन शिव ने केदारनाथ के लिए प्रस्थान किया था।  

महंत शिवानंद गिरी जी बताते है कोटेश्वर के कण कण में शिव का निवास स्थान है , केदारनाथ बद्रीनाथ जाने वाले श्रद्धालु यहाँ जरूर एते है और कोटेश्वर  महादेव का आशीर्वाद लिए बगैर नहीं जाते , यहाँ सबकी मनोकामनाएं पूरी होती है , तो अगर आप अगली बार केदारनाथ जाओ तो यहाँ पर जरूर आइये और यहाँ शिव का आशीर्वाद लीजिये साथ ही प्रकृति का आनंद उठाये। 

 

कोटेश्वर महादेव मंदिर कहाँ हैं

कोटेश्वर महादेव मंदिर रुद्रप्रयाग ज़िले में अलकनंदा नदी के किनारे बसा हुआ है अगर आप यहाँ आना चाहते है तो आपके पास ३ विकल्प है , हवाई रास्ता , रेल मार्ग और सड़क मार्ग


वायु मार्ग - सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जॉलीग्रांट देहरादून का आता है यहाँ से रुद्रप्रयाग की दूरी 251 किलोमीटर है NH 7 से सीधा आपको केदारनाथ वाला मार्ग अपनाना है।

रेल मार्ग - नज़दीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश का है , यहाँ से रुद्रप्रयाग की दूरी NH 7 से 138 KM है  | 

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