Know The History of Tungnath Temple
भारत एक ऐसा धार्मिक और आध्यात्मिक देश है, जिसमें अनेकों पवित्र धाम और मंदिर हैं जो धार्मिकता, संस्कृति, और प्राचीन इतिहास के साथ जुड़े हुए हैं। यहां पर एक ऐसा महान मंदिर है, जो हिमालय की गरिमा और प्राकृतिक सौंदर्य के बीच स्थित होने के कारण खास है। इस लेख में हम तुंगनाथ मंदिर के इतिहास, महत्व, और प्राकृतिक सौंदर्य के बारे में जानेंगे ।
तुंगनाथ मंदिर का इतिहास:
तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यह मंदिर हिमालय के पांच पंचकेदार मंदिरों में से एक है, और भगवान शिव के साक्षात् धरोहर के रूप में यहां के संबंधित पौराणिक कथाओं में प्रसिद्ध है।
"प्राचीन काल में भारत में महाभारत युद्ध हुआ था, और इस युद्ध के दौरान पांडवों ने अपने भाई कौरवो और भीष्मपितामह का वध करके युद्ध जीत लिया था लेकिन उनके सर पर अपने भाइयो और पिता की हत्या का पाप था जिससे वो मुक्ति पाना चाहते थे इसीलिए शिव की तलाश में वह हिमालय की ओर निकल पड़े लेकिन भगवन शिव उनसे नाराज़ थे व् उनको दर्शन देना नहीं चाहते थे , अंततः पांडव केदारघाटी के हिमालयी इलाके तक भगवन शिव को तलाशते हुए पहुँच गए जहाँ भगवन शिव ने उनको देखकर भैंसे का रूप धारण कर लिया और जानवरो के झुण्ड में जा मिले उसी वक़्त सारे जानवरो ने भीम पर हमला किया भीम विशाल काय थे तो उन्होंने अपने पैरो को फैला लिया सारे जानवर उनके पैरो के नीचे से निकल गए पर शिव स्वरूपी भें उनके पैरो के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए उसी वक़्त भीम ने उनको पहचान लिया और भैंस की पीठ पकड़ ली , "अक्सर लोगो को ये ये पता नहीं होता की तुंगनाथ में भगवान शिव का कौन सा भाग है? तो चलिए आज इस बारे में जानते है"भैंस जमीन के नीचे धसने लगा भीम में पीठ पकड़ कर खींची तो वह केदारघाटी में जा कर गिरी
जहाँ आज केदारनाथ है और इसी तरह भैंस जमीन में धसने के बाद उत्तराखंड की पहाड़ियों पर उनके भाग प्रकट हुए , केदारनाथ में पीठ , मद्महेश्वर में नाभि , तुंगनाथ में भुजाये , रुद्रनाथ में दिन और कल्पेश्वर में बाल प्रकट हुए जहाँ आज शिव के उन्ही स्वरूपों की पूजा की जाती है । यात्रा के दौरान धार्मिकता के आध्यात्मिक माहौल के लिए भी प्रसिद्ध हिमालयी धामों का दर्शन करने का संयम किया गया था। इसी यात्रा के दौरान पांडवों ने तुंगनाथ में भगवान शिव को प्राप्त किया था, जिसके बाद मंदिर का निर्माण किया गया।"
तुंगनाथ मंदिर क्यों प्रसिद्ध है
तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) का नाम भगवान शिव के एक रूप "तुंग" से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है "भुजाये "। उन पांच केदारो का निर्माण अदि गुरु शंकराचार्य द्वारा करवाया गया था , जिसका प्राचीनतम उल्लेख भविष्य पुराण में मिलता है। विश्वसनीयता के अनुसार, मंदिर का निर्माण महाभारत के दौरान हुआ था, और इसके बाद से ही यह धार्मिक और आध्यात्मिक स्थल के रूप में चर्चा में आया है।
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तुंगनाथ विश्व का सबसे ऊँचा माने जाने वाला शिव मंदिर है जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से 3680 मीटर है , तुंगनाथ के आस पास भारतीय शैली की वास्तुकला में स्थित कई सारे मंदिर बने है , और उन मंदिरो से जुडी काफी कहानिया भी है , वही तुंगनाथ से 1 किलोमीटर ऊपर चंद्रशिला मंदिर भी बना है जहाँ श्री राम ने रावण का वध करने के पश्चात् ब्रह्म हत्या पाप से मुक्ति पाने के लिए वह तप किया था। और आज की तारिख में वो जगह श्रद्धालुओं से ज्यादा ट्रैकिंग शौक़ीन की पसंददीदा जगह बन चुकी है |
तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखता है। इसे हिमालय की चोटी पर स्थित होने के कारण "भगवान का अपना आलमकार" माना जाता है। यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर यह अनुभव होता है कि यह जगह भगवान की आत्मा और शक्ति से ओत-प्रोत है। इसलिए यहां जुटे श्रद्धालु अपने आप को पवित्रता और धार्मिकता के संबंध में ऊंचे स्तर पर महसूस करते हैं।
Best TIME TO VISIT TUNGNATH TEMPLE (तुंगनाथ जाने का सबसे अच्छा समय क्या है?)
अगर आप तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) जाने के इच्छुक है तो ध्यान रखिये आपको गर्मियों में तुंगनाथ जाना चाइये अगर आप दर्शन करने जाना चाहते है। अगर आप केवल ट्रैकिंग के शौक़ीन है तो आप अप्रैल से नवम्बर के माह के बीच जाइये क्युकी उस वक़्त वह बर्फ गिरती है जो आपके सफर को रोमांचक बना देगी। लेकिन श्रद्धालु जो केवल शिव के दर्शन करना चाहते है और उनके पास अपना कोई व्यक्तिगत वाहन नहीं है तो आप सावन में मत जाइये क्युकी आपको रहने और आने जाने में परेशानी हो सकती है
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Places To Visit In Tungnath
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