नवरात्रि की शुरुआत कैसे हुई
चैत्र नवरात्रि की शुरुआत कैसे हुई हो गई है ऐसे में चलिए जानते हैं कि आखिर हम नवरात्रि क्यों मनाते हैं. नवरात्रि को 9 दिन मनाने के पीछे की कहानी को समझते है।
मां दुर्गा स्वयं शक्ति का स्वरूप हैं और नवरात्रि में सभी भक्त आध्यात्मिक शक्ति, सुख-समृद्धि की कामना करने के लिए इनकी उपासना करते हैं और व्रत रखते हैं।
नवरात्रि के दौरान माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। शक्ति स्वरूपा देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए साल में चार बार नवरात्रि पड़ती हैं जिनमें एक बार शारदीय और एक बार चैत्र नवरात्रि, इसके अलावा 2 बार गुप्त नवरात्रि, और इस दौरान भक्त माता की आराधना करते हैं. नवरात्रि में माता की पूजा-अर्चना करने का विधान सदियों से चला आ रहा है।
लेकिन, क्या आप जानते हैं कि नवरात्रि की शुरुआत कब और कैसे हुई?
जिस राजा के द्वारा नवरात्रि की शुरुआत हुई थी उन्होंने भी देवी दुर्गा से आध्यात्मिक बल और विजय की कामना की थी. वाल्मीकि रामायण में उल्लेख मिलता है कि, किष्किंधा के पास ऋष्यमूक पर्वत पर लंका की चढ़ाई करने से पहले प्रभु राम ने माता दुर्गा की उपासना की थी. ब्रह्मा जी ने भगवान राम को देवी दुर्गा के स्वरूप, चंडी देवी की पूजा करने की सलाह दी और ब्रह्मा जी की सलाह पाकर भगवान राम ने प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक चंडी देवी की उपासना और पाठ किया था।
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नवरात्रि के पीछे क्या कहानी है?
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, नवरात्रि बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह कहानी देवी दुर्गा और भैंस राक्षस महिषासुर के बीच हुए भयंकर युद्ध के इर्द-गिर्द घूमती है। ऐसा माना जाता है कि महिषासुर ने अपनी भक्ति के माध्यम से अपार शक्ति प्राप्त कर ली थी, जिससे वह लगभग अजेय हो गया था। दुनिया को उसके अत्याचार से बचाने के लिए, देवताओं ने अपनी शक्तियों को मिलाकर देवी दुर्गा का निर्माण किया, जो दिव्य स्त्री ऊर्जा का अवतार हैं।
नौ रातों और दस दिनों तक देवी दुर्गा ने महिषासुर के खिलाफ अथक युद्ध लड़ा और अंततः दसवें दिन, जिसे दशहरा के नाम से जाना जाता है, उसका वध कर दिया। नवरात्रि का प्रत्येक दिन देवी दुर्गा के नौ रूपों में से एक को समर्पित है, जिसमें प्रत्येक रूप उनकी शक्ति और ताकत के एक अद्वितीय पहलू का प्रतिनिधित्व करता है।
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नवरात्रि पूरे भारत में बहुत उत्साह और उमंग के साथ मनाई जाती है। लोग देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा करने के लिए एक साथ आते हैं, उनका आशीर्वाद और सुरक्षा चाहते हैं। इस त्यौहार को जीवंत नृत्य प्रदर्शनों द्वारा चिह्नित किया जाता है, जिसे गरबा और डांडिया रास के रूप में जाना जाता है, जहाँ लोग पारंपरिक पोशाक में इकट्ठा होते हैं और लयबद्ध ताल पर नृत्य करते हैं।
इन नौ रातों के दौरान, भक्त शुद्धि के रूप में कुछ खाद्य पदार्थों और प्रथाओं से परहेज़ करते हुए उपवास करते हैं। वे खूबसूरती से सजी हुई वेदियाँ बनाते हैं और उन्हें फूलों, रोशनी और देवी की मूर्तियों से सजाते हैं। नवरात्रि की भावना का जश्न मनाने के लिए जुलूस, सांस्कृतिक कार्यक्रम और संगीत प्रदर्शन आयोजित करना भी आम बात है।
माँ दुर्गा के 9 रूप (नवदुर्गा) और उनका महत्व
माँ दुर्गा के नौ रूपों को नवदुर्गा कहा जाता है। ये नौ रूप नवरात्रि के नौ दिनों में अलग-अलग पूजे जाते हैं। प्रत्येक रूप का अपना विशेष महत्व और आशीर्वाद होता है। आइए जानते हैं माँ दुर्गा के इन नौ रूपों के बारे में:
1. शैलपुत्री (Shailputri) - पहला दिन
अर्थ: "शैलराज हिमालय की पुत्री"
- माता पार्वती का यह रूप सबसे पहला है। इन्हें वृषभ (बैल) पर सवार दर्शाया जाता है, दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल होता है।
- इनकी पूजा से शांति, सौभाग्य और स्थिरता प्राप्त होती है।
2. ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini) - दूसरा दिन
अर्थ: "ब्रह्मचर्य (तपस्या) करने वाली देवी"
यह रूप माता पार्वती का है जब उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी।
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- दाएं हाथ में जपमाला और बाएं हाथ में कमंडल होता है।
- इनकी उपासना से भक्त को संयम, तप और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
3. चंद्रघंटा (Chandraghanta) - तीसरा दिन
अर्थ: "चंद्र के आकार की घंटा धारण करने वाली देवी"
- माता का यह रूप वीरता और सौम्यता का संगम है। इनके मस्तक पर अर्धचंद्र सुशोभित होता है
- सिंह पर सवार माता के दस हाथ होते हैं, जिनमें अस्त्र-शस्त्र होते हैं।
- इनकी पूजा से भय, शत्रु और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है।
4. कूष्मांडा (Kushmanda) - चौथा दिन
अर्थ: "सृष्टि को उत्पन्न करने वाली देवी"
- मान्यता है कि माँ कूष्मांडा ने अपनी दिव्य मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की।
- माता के आठ हाथ होते हैं और वे सिंह पर विराजमान रहती हैं।
- इनकी पूजा से आरोग्य, दीर्घायु और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
5. स्कंदमाता (Skandamata) - पाँचवां दिन
अर्थ: "भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता"
- यह माता करुणा और ममता का स्वरूप हैं।
- सिंह पर सवार माता के चार हाथ होते हैं, जिनमें एक में कमल और गोद में भगवान कार्तिकेय होते हैं।
- इनकी पूजा से बुद्धि, ज्ञान और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
6. कात्यायनी (Katyayani) - छठा दिन
अर्थ: "महर्षि कात्यायन की तपस्या से जन्मी देवी"
- माता दुर्गा का यह रूप शक्ति और वीरता का प्रतीक है।
- सिंह पर सवार, चार भुजाओं वाली माता राक्षसों का संहार करती हैं।
- इनकी पूजा से विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं और दांपत्य जीवन सुखमय होता है।
7. कालरात्रि (Kalaratri) - सातवां दिन
अर्थ: "अंधकार और बुरी शक्तियों का नाश करने वाली देवी"
- यह माता का रौद्र रूप है। इनका शरीर काला, बाल खुले हुए और गले में नरमुंड की माला होती है।
- यह दुष्टों का संहार करती हैं और भक्तों को निर्भय बनाती हैं।
- इनकी पूजा से नकारात्मक ऊर्जा, भय और शत्रुओं से मुक्ति मिलती है।
8. महागौरी (Mahagauri) - आठवां दिन
अर्थ: "अत्यंत गौर वर्ण की देवी"
- यह माँ पार्वती का अत्यंत सुंदर, श्वेत वस्त्र धारण किए शांत स्वरूप है।
- वृषभ पर सवार चार भुजाओं वाली देवी करुणा और शांति की प्रतीक हैं।
- इनकी पूजा से सुख-समृद्धि, वैवाहिक जीवन की समस्याओं का निवारण और पवित्रता प्राप्त होती है।
9. सिद्धिदात्री (Siddhidatri) - नौवां दिन
अर्थ: "सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली देवी"
- यह माता ब्रह्मांड की सभी सिद्धियों की दाता हैं।
- ये कमल पर विराजमान रहती हैं और चार भुजाओं में गदा, चक्र, शंख और कमल धारण करती हैं।
- इनकी उपासना से आध्यात्मिक उन्नति और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।