कार्तिकेय मंदिर जाने के लिए सबसे पहले रुद्रप्रयाग से 40 किलोमीटर दूर चमोली जिले के कनकचौरि गांव में आना होता है , कनकचौरि बेहद छोटा इलाका और बाजार है लेकिन यहाँ रुकने के लिए हमे बेहतर होमस्टेस मिल जाते है , और यही से कार्तिक स्वामी की चढाई शुरू होती है जो की 3 .5KM है , मंदिर की सीमा में प्रवेश करने के लिए हमे शुल्क अदा करना होता है, जिसमे भारत के नागरिको को 50 रूपए और विदेशी नागरिको को 100 रूपए प्रति व्यक्ति देना होता है , और अगर आपके पास कोई ड्रोन या फिर कैमरा है तो उसका शुल्क अलग से देना होता है , और उसके बाद शुरू होती है स्वामी कार्तिकेय भगवान् के अद्भुद सफर की शुरुआत
Kartik Swami History
3 .5 KM का सफर तय करने के बाद हम पहुंचे कार्तिक स्वामी स्वामी मंदिर 3KM तक कच्चे पक्के रस्ते है और उसके बाद मंदिर तक जाने के लिए सुन्दर सीडिया बनी हुई है , और मंदिर के अंदर प्रवेश करने से पहले वन देवी को लोग चुन्निया चढ़ाते है यहाँ हर पेड़ पर चुन्निया , चूडिया , और सारा श्रृंगार का सामान बांधते है क्युकी चाहे आप कोई भी मंदिर चले जाओ वहां उस इलाके की रक्षा यही वन देवी देवी करती है
पहाड़ो पर चलने के लिए भी कुछ नियम होते है और अगर उन नियमो का पालन नहीं किया गया तो आप साक्षात् वन देवी के दंड के अधिकारी भी होंगे , वनो में प्रवेश करने से पहले आपको ये जरूर देखना है की आप जोर से न बात कारे, कोई भी गाना तेज़ आवाज़ में न बजाये , कही भी खुले में शौच न करे ,
मंदिर पहुँचने से पहले वन देवी के दर्शन होंगे , फिर Bhairav Baba के और उसके बाद Hanumaan जी के , tab आप दर्शन करोगे कार्तिक स्वामी जी के , कार्तिक स्वामी यहाँ के सभी गांव के कुल देवता के तौर जाने जाने जाते है और कार्तिक स्वामी अपने भक्तो के शरीर पर भी विराजमान होते है , और कोई घटना होती है तो सभी लोग कार्तिक स्वामी जी की ही पूजा करते है
History of Katarmal Sun Temple
, यहाँ पर कार्तिक स्वामी निराकार रूप में विराज मान है , यहाँ उनकी हड्डियों की पूजा होती है , जिस पर्वत पर स्वामी कार्तिकेय जी मंदिर है उस पर्वत को क्रौच पर्वत कहा जाता है और उत्तरी भारत का इकलौता कार्तिक जी का मंदिर है , इस पूरे इलाके में एक अलग वाइब्रेशन है जो यहां आकर महसूस होगी ,
अब बात करते है की उत्तरी भारत में इकलौता मंदिर क्यों है इनका , दोस्तों जितने भी भगवान् की के मंदिर यहाँ पर है उनका इतिहास उसी जगह का मिलता है और कार्तिक जी का इतिहास केवल इसी जगह का है इसीलिए केवल इक मंदिर उनका यहाँ पर है , वैसे तो इनकी सभी कहानिया तमिल में ज्यादा प्रचिलित है लेकिन इतिहास की सबसे बड़ी घटना उनकी यही हुई थी जिसकी वजह से माँ पारवती और भगवान् शिव को अपना शरीर त्याग कर वो इसी क्रौंच पर्वत पर नराकार रूप में विराज मान हो गए थे , कहते है एक दिन भगवान् शिव ने गणेश जी और कार्तिकेय जी को कहा जो भी ब्रह्माण्ड के सात चक्कर लगा कर आएगा उसे हिमालय का अधिपत्य चुना जायेगा और सभी पूजा में सबसे पहले उसकी ही पूजा होगी , ये सुनते ही कार्तिकेय जी अपने वहां मोर पर बैठ कर ब्रह्माण्ड के चक्कर लगाने के लिए चले गए ,
शिव को यहाँ मिला था श्राप
लेकिन गणेश जी का वहां तो मूसक था और उसकी चल बहुत धीमी थी , तो गणेश जी ने अपने माता पिता के 7 चक्कर लगाए और कहाँ मुझको तो आप पर ही सारा ब्रह्माण्ड नजर आता है इसीलिए में आपके चक्कर लगा रहा हु , ये देखकर शिवजी अति प्रसन्न हुए और उनको हिमालय का अधिपत्य चुना गया और उनकी सबसे पहले पूजा का विधान शुरू हुआ , और जब कार्तिकेय जी आये और उन्होंने गणेश जी की जजयजयकार देखी तो उनको अपने माता पिता पर अत्यंत क्रोध आया उनको लगा उनके साथ छल हुआ है और अपनी माता से कहा की मुझे आपके दिए शरीर को भी अपने पास नहीं रखना है और अपने शरीर का पूरा मांस वहां त्याग कर वो इसी क्रोंच पर्वत पर आ कर समाधीन हो गए |
कार्तिक स्वामी मंदिर कब बना
अभी यह मंदिर जैसा दिखता आज से 200 साल पहले ये ऐसा नहीं था , एक पत्थर के खण्डर पर एक मूर्ती विराज मान थी और उस मूर्ती के अंदर स्वामी कार्तिकेय जी विराजमान थे लेकिन इस मंदिर के बारे में लोगो कैसे पता चला इसके पीछे एक रोचक कहानी है जो सात प्रतिशत सत्य है , कनकचौरि से 14 किलोमीटर दूर एक गांव है डूंगरी चापड़ वहां एक व्यक्ति रहते थे हिम्मत सिंह बुटोला जो की भारतीय फौज में काम करते है और युद्ध के समय बर्फ में दब गए थे तब उनको एक सपना आता है और सपने में कोई कहता है में तुझे तेरे घर ले जाऊंगा लेकिन तुझे उस पर्वत पर जा कर मेरा एक मंदिर बनाना होगा और कहते है वो एकलौते ऐसे व्यक्ति थे जो की शेर पर सवार हो कर इस मंदिर में आये थे और एक छोटे से मंदिर का निर्माण करवाया , इसके बाद सं 1999 को इस मंदिर का पुनः निर्माण हुआ और उत्तराखंड पर्यटन ने यहाँ सौंदर्यीकरण का काम किया , और अब ये बेहद सुन्दर मंदिर बन चुका है |