आप सभी लोग कभी न कभी ऋषिकेश से दिल्ली की तरफ जरूर गए होंगे तो रास्ते में हरिद्वार में हरकी पौड़ी के ऊपर एक छोटा सा मंदिर दिखता होगा क्या आपको उस मंदिर के बारे में पता है अगर नहीं पता है तो इस ब्लॉग को पूरा पढ़े ताकि आपको उस मंदिर की मान्यताये और इतिहास समझ में आये।
दोस्तों इस मंदिर का नाम है मनसा देवी मंदिर जो हरिद्वार में स्थित माँ का एक शक्ति पीठ है जो भी कभी हरिद्वार में गया है उस व्यक्ति ने माँ मनसा देवी के दर्शन जरूर करे है , लेकिन उनके इतिहास से वो कभी परिचित नहीं हुआ तो चलिए आज आपको माँ के इतिहास से परिचित करवाते है , माँ मनसा देवी का मंदिर शिवालिक रेंज की पहाड़ियों में स्थित बिल्वा पहाड़ पर है , जहाँ से हरिद्वार के खूबसूरत नज़ारे दिखते है यहाँ आप पैदल या ट्राली मार्ग से भी आ सकते है जिसका किराया मात्र 100 रूपए है , पैदल जाने के भी दो मार्ग है एक सीढ़ियों वाला जो की हरकी पौड़ी से आता है जिसकी दूरी 3 किलोमीटर है और दूसरा मोटर मार्ग जहाँ से मंदिर की दूर मात्र 1 .5 किलोमीटर है,
मंदिर का इतिहास (History of Mansa Devi Temple Haridwar)
हरिद्वार मोक्ष की नगरी है यहाँ त्रिदेव यानि ब्रह्मा विष्णु महेश वास करते है साथ ही साथ हरिद्वार माँ सती और शिव के अटूट प्रेम का गवाह स्थल है परन्तु यहाँ पर भगवान् शिव के आलावा अनेको ऐसे मंदिर है जिनकी कहानी आपको हैरत में डाल सकती है उन्ही में से एक माँ मनसा देवी का मंदिर भी है वैसे कई जगह पड़ा होगा की यहाँ पर माता सती की नाभि गिरी थी लेकिन ये सूचना गलत है ,
यह एक सिद्ध पीठ है , मनसा देवी मंदिर का निर्माण मनी माजरा के राजा गोपाल सिंह ने 1811 से 1815 में करवाया था , राजा गोपाल सिंह माँ मनसा देवी के अटूट भक्त थे पहले वो माँ मनसा देवी के मंदिर तक एक गुफा के जरिये उनके दर्शन करने आते थे, और माँ से उन्होंने एक मन्नत मांगी और मन्नत के पूरा हो जाने पर उन्होंने वह पर एक मंदिर बनाने का फैसला किया , मंदिर के निर्माण का इतिहास 200 से 250 साल पुराना है लेकिन इनकी मान्यताये अनेको वर्षो पुरानी है
भक्तो के दुःख हर लेता है ये माँ बगलामुखी का लॉकेट
कथा 1- दोस्तों जब समुद्र मंथन हुआ था जब समुद्र से अमृत , ऐरावत हाथी, कल्पवृक्ष , जैसे 14 रत्नो की उत्पत्ति हुई थी जिनमे से एक विष भी था जिसे भगवान शिव ने जन कल्याण के लिए उसे स्वयं पी लिया था और उस विष का तेज़ इतना तीव्र था की वो भगवन शिव को भी पीड़ा पजुंचा रहा था तब शिव ने अपने मानस से एक विषकन्या को जन्म दिया जिसने भगवन शिव का सारा ज़हर निकाला और उनके गले को आराम दिया इसी विश्न कन्या को माँ मनसा देवी का नाम मिला जिनको भगवान् शिव की पुत्री के तौर पर भी जाना जाता है। तब से जान कल्याण के के लिए माँ मनसा देवी को इस बिल्वा पहाड़ पर स्थान मिला और तब से माँ मनसा देवी लोगो के दुःख दूर करती है और लोग यहाँ अपने काल सर्प की पूजा करवाने बहोत दूर दूर से आते है। आपको बता दू माँ मनसा देवी का विववाह जगतकारू से हुआ था और इनको नागो के राजा वासुकि की बेहेन के तौर पर भी जाना जाता है ।
कथा 2 - दोस्तों महिषासुर नाम का एक असुर था जो की ब्रह्मा जी का अनन्य भक्त था , और वरदान मिला था की कोई भी देवता या दानव उसे नहीं मार सकता , न स्वर्ग में मार सकता है न धरती पर मार सकता है , यह वरदान पा कर वो देवताओ को सताने लगा , एक बार तो स्वर्ग पर वजय प्राप्त करने के उद्देश्य से वो वहाँ गया और सभी देवताओ को पछाड़ इंद्र को परास्त करके स्वर्ग पर विजय प्राप्त कर ली, सभी देवगन परेशां हो कर त्रिदेव यानि ब्रह्मा , विष्णु , महेश जी के पास पहुंचे। तब त्रिदेव के त्रिकुटी से एक ज्वाला निकली जिसने माँ दुर्गे का रूप लिया और माँ दुर्गा ने उस महिषासुर का अंत किय। महिषा सुर को वरदान था की कोई भी देवता या दानव उसे नहीं मार सकता, न धरती पर न स्वर्ग पर इसीलिए महिषासुर का अंत करने के लिए माँ दुर्गा का जन्म हुआ जिन्होंने उस दानव का अंत किया और जान कल्याण के लिए माँ दुर्गा अन्य रूपों में अलग अलग झः विराज मान हुईं। जिनमे से माता मनसा देवी का एक स्थान भी है , जब भी आप यहाँ दर्शन करने जाओगे तो आपको माँ के मूर्ती के बगल में महिषासुर की प्रतिमा भी मिलेगी |
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पहले इस मंदिर में भी बलि प्रथा थी जो की समय के साथ ख़तम हुई और बलि प्रथा को ख़त्म करने के लिए माँ गायत्री की स्थापना हुई जिनके ५ शीश और दस भुजाये है , और माँ मनसा देवी का एक मुख और अठारह भुजाये है , माँ गायत्री की प्रतिमा माँ मनसा देवी के ऊपर विराजमान है , माँ बहुत दयालु है सबकी मनोकामना पूरी करती है और उनके मन की इच्छाये पूरी करती है इसीलिए इनका नाम माँ मनसा देवी है।