आज हम जानेंगे धारी देवी मंदिर के इतिहास (History of Dhari devi ) के बारे में , जो की देवभूमि उत्तराखंड की सबसे प्रसिद्द देवी मानी जाती है , धारी देवी (Dhari Devi) का मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी जिले में कल्यासौड़ नामक स्थान में धारी गांव में है , अलकनंदा नदी के बीच में बसा ये मंदिर बेहद खूबसूरत है , केदारनाथ और बद्रीनाथ जाते वक़्त लोग धारी देवी के दर्शन जरूर करते है , माना जाता है की धारी देवी उत्तराखंड के चारो धामों की रक्षक है , माँ धारी के आशीर्वाद से ही लोग चार धाम की यात्रा सफल रूप से कर पाते है , लेकिन जब माँ धारी देवी अपने रौद्र रूप में होती है तो किसी को नहीं बख्शती , तो चलिए आज इस ब्लॉग के माध्यम से हम माँ धारी देवी के इतिहास (History of dhari devi in hindi) के बारे में जानते है की आखिर कैसे यहाँ माँ धारी देवी का मंदिर बसा।
धारी देवी (Dhari Devi)एक रहस्य्मयी देवी है , जो भक्त माँ के इस मंदिर में आता है, वो यह चमत्कार अपनी आँखों से देख सकता है , जो भी यहाँ आया उसने देखा की माँ १ दिन में अपने रूप को एक दिन में तीन बार बदलती है , सुबह छोटी बालिका के रूप में , दिन में यौन अवस्था में , और श्याम को वृद्ध अवस्था में अपने भक्तो को दर्शन देती है। इसके साक्ष वो लोग है जो यहाँ माँ के दर्शन सच्चे दिल से करने आते है,
माँ धारी का रौद्र रूप तब देखने को मिला था जब अलकनंदा नदी से कुछ किलोमीटर आगे विद्युत् बनाने के लिए डैम बनना था, और उस के लिए माँ धारी देवी के मंदिर को शिफ्ट करने की बात रखी गयी क्युकी माता का मंदिर ठीक अलकनंदा नदी के बीचो बीच स्थित है , तो जब माँ की मूर्ति अपने स्थान से उठाई गयी तो उसके ठीक 2 से 4 घंटे के बीच केदारनाथ से एक सैलाब आया जिसने लाखो जिन्दगिया तबाह कर दी , केदारनाथ में बाढ़ आना माँ के गुस्से का प्रकोप माना जाता है , क्युकी पंडितो ने भी मूर्ती को न हटाने के लिए कहा था , लेकिन सरकार के आदेश पर मूर्ती हटा दी गयी जिसके बाद उत्तराखंड में केदारनाथ से आई आपदा का नुक्सान कई ज़िंदगियों को चुकाना पड़ा। माँ धारी का मंदिर चारो धामों के रक्षक के रूप में जाना जाता है तो आइये जानते है धारी देवी की सच्ची कहानी के बारे में (True story of dhari devi )।
धारी देवी की पौराणिक मान्यताये (Story of Dhari devi Temple, Uttrakhand)
धारी देवी कौन थी - Dhari Devi Kaun thi
दोस्तों माँ धारी के 7 भाई थे और अपने भाइयो से माँ धारी बहुत प्रेम करती थी, लेकिन उनके भाई उनको बिलकुल पसंद नहीं करते थे , इसके दो कारण थे, पहला की उनका रंग बहुत ज्यादा सांवला था और दूसरा की उनको पता चल गया था की उनकी बहन के ग्रह उन भाइयो के लिए अच्छे नहीं है , जब तक ये छोटी बच्ची है तब तक उनके जीवन को संकट है, माँ पिता के गुजर जाने के बाद भाइयो ने उनका ध्यान रखा इसलिए वो उन पर अपनी जान छिड़कती थी , लेकिन भाइयो की नफरत और डर बढ़ने लगा, धीरे धीरे समय बीतता गया और 7 में से 5 भाइयो की अकस्मात् मौत हो गयी ये देख कर बाकि के बचे दो भाइयो की अपनी जान का खतरा बन गया , एक दिन उन दो भाइयो और उनकी पत्नियों ने मिलकर योजना बनाई की इस लड़की को मार देते है जिससे उनकी जान बाच जाये। फिर एक रत को सबने मिलकर अपनी बहन का गला काट दिया और उसे अलकनंदा नदी में बहा दिया , उस छोटी बच्ची का गला बहते हुए कल्यासौड़ नाम के स्थान पर धारी गांव के पास अलकनंदा नदी के बीच एक पत्थर से टकराया , जैसे ही गला धारी गांव में पहुंचा तो एक आदमी ने देखा नदी में एक लड़की बहती हुई आ रही है उस लड़के ने लड़की को बचाना चाहा जो सिर्फ एक गला था लेकिन बहाव तेज़ होने की वजह से वो नदी में नहीं जा पा रहा था , तभी एक आकाशवाणी होती है की डरो मत मेरे पास आओ और मुझे बचाओ तुमको कुछ नहीं होगा , तू जहाँ जहाँ पैर रखेगा में वहाँ वहाँ पे तेरे लिए सीढ़ी बना दूँगी, कहा जाता है कि कुछ समय पहले ये सीडिया यहाँ पर दिखाई देती थीं ।
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वह लड़का धीरे धीरे नदी के पास जाता है और सर को उठता है और डर जाता तो देखता है की यह तो कटा हुआ है तो आवाज़ कहा से आ रही है , तो गले से आवाज़ आती है की डर मत में स्वयं देवी स्वरुप हु मुझे एक पवित्र स्थान में स्थापित करदे , वो लड़का भी अचंभित था की नदी में सीडिया बनना , कटे हुए सर से आवाज़ आना , ये अवश्य ही देवी स्वरुप है , जब लड़के ने एक पत्थर पर सर को स्थापित किया तब माँ ने अपनी सारी कहानी बताई , और उसके बाद उस कटे हुए सर ने एक पत्तर का रूप लिया और वही पर धारी गांव की देवी के नाम से प्रसिद्द हुई , वहीँ जो उनका धड़ वाला हिस्सा था वो रुद्रप्रयाग कालीमठ में है और माँ मैथानी के नाम से प्रसिद्द है , और यहाँ माँ धारी का भव्य मंदिर भी स्थित है।
धारी देवी मंदिर कहाँ है।
धारी देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य के पोड़ी जिले में श्रीनगर गढ़वाल में अलकनंदा नदी के तट पर श्रीनगर बद्रीनाथ राजमार्ग पर कल्यासोड़ में स्थित है।
यह मंदिर श्रीनगर गढ़वाल से लगभग 15 किलोमीटर,रुद्रप्रयाग से 20 किलोमीटर ओर दिल्ली से 360 किलोमीटर दूर है।
मुझे उम्मीद है कि Dhari Devi Temple के बारे में यह जानकारी आपको पसंद आयी होगी
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