प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, भारतीय संस्कृति और इतिहास का एक प्रमुख केंद्र है। यह शहर अपने संगम, कुंभ मेले, और धार्मिक महत्त्व के लिए जाना जाता है। 2025 का प्रयागराज मेला इस शहर की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक धरोहर को एक बार फिर से उजागर कर रहा है। इस ब्लॉग में हम प्रयागराज के इतिहास, इसके धार्मिक महत्व, और मेले तक पहुँचने के तरीकों की जानकारी देंगे।
कुंभ क्या है?
कुंभ भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और धार्मिक परंपराओं का सबसे बड़ा उत्सव है। यह दुनिया का सबसे विशाल धार्मिक मेला है, जो हर 12 साल में चार पवित्र स्थानों पर आयोजित होता है:
- प्रयागराज (गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर)
- हरिद्वार (गंगा नदी के किनारे)
- उज्जैन (क्षिप्रा नदी के किनारे)
- नासिक (गोदावरी नदी के किनारे)
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क्यों लगता है कुम्भ ?
कुम्भ का इतिहास समुद्र मंथन से होता है, जब देवताओ और राक्षसों को समुद्र मंथन के दौरान अमृत मिला और छीना झपटी में अमृत की ४ बूंदे धरती पर गिर गयी , जिस वजह से वो जगह भी हमेशा के लिए अमर हो गयी वो जगह थी , प्रयागराज , उज्जैन , नासिक , और हरिद्वार
क्यों लग रहा है 144 साल बाद कुम्भ
हर 6 साल में अर्ध कुम्भ लगता है हर 12 साल में में महाकुम्भ लगता है और हर 144 साल में पूर्ण कुम्भ लगता है , लगभग 850 वर्ष पूर्व आदि गुरु शंकराचार्य के द्वारा कुम्भ की शुरुआत हुई थी , यह कुम्भ हर 12 साल बाद आता है क्यों उस वक़्त बृहस्पति सभी राशियों का चक्कर पूरा करके पूरे १२ वर्षो बाद वापस अपनी कुम्भ राशि में प्रवेश करता है , पिछली बार प्रयागराज में कुम्भ 2013 में हुआ था और अब 12 वर्षो बाद कुम्भ फिरसे प्रयागराज में होने जा रहा है , आपको बता दें की मनुष्य के 12 साल देवताओ के 12 दिन के बराबर है और जब समुद्र मंथन के दौरान देवताओ और असुरो के बीचे अमृत कलश के लिए युद्ध हुआ तो पूरे 12 सालो तक चला जो को देवताओ के 12 दिन के बराबर है , और इस अवधी के दौरान जिन नदियों में अमृत की बूंदे गिरी वो नदिया अमृत बन गयी . 12 अंक का महत्व होने के कारन 12 साल में 12 बार महा कुम्भ लगने बाद अब ये 144 व कुम्भ है जो 12 के गुणांक में अत है इसीलिए ये पूर्ण कुम्भ माना जाता है , ये पीड़ी बहोत खुशनसीब पीड़ी है जिसे पूर्ण कुम्भ देखने को मिल रहा है
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प्रयागराज में ही क्यों लगता है महाकुंभ मेला
प्रयागराज वह स्थान है जहाँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों का संगम होता है। इसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है, और इसे अत्यंत पवित्र माना गया है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब अमृत कलश के लिए देवताओं और असुरों में संघर्ष हुआ, तो अमृत की कुछ बूंदें प्रयागराज सहित चार स्थानों (हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर गिरीं।
संगम को आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का स्थान माना गया है, और इस कारण यहाँ महाकुंभ का आयोजन होता है।
प्रयागराज को हिंदू धर्म में तीर्थराज का दर्जा प्राप्त है। यह स्थान अनेक ऋषियों और मुनियों की तपस्थली रहा है।
संगम में स्नान को विशेष पुण्यदायी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि कुंभ के दौरान संगम में स्नान करने से जन्म-जन्मांतर के पापों का नाश होता है और मोक्ष प्राप्त होता है।
कुंभ और महाकुंभ में अंतर
कुंभ और महाकुंभ दोनों ही भारत के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से हैं, लेकिन इन दोनों के बीच कई अंतर हैं। ये अंतर मुख्य रूप से आयोजन की अवधि, खगोलीय घटनाओं, और धार्मिक महत्व से जुड़े हैं। आइए विस्तार से समझते हैं:
कुंभ मेला : हर 12 वर्षों में चार स्थानों (प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक) में से एक पर आयोजित किया जाता है। यह आयोजन बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश और सूर्य के मकर राशि में होने पर होता है।
महाकुंभ मेला: महाकुंभ मेला केवल प्रयागराज में आयोजित होता है और यह हर 144 वर्षों में एक बार आयोजित किया जाता है। महाकुंभ मेला खगोलीय दृष्टि से विशेष होता है, जब दुर्लभ ग्रह-स्थिति बनती है।इसे कुंभ का सबसे बड़ा और पवित्र संस्करण माना जाता है।
कुंभ मेला: बृहस्पति जब कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मकर राशि में होता है, तब कुंभ मेले का आयोजन होता है।
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महाकुंभ मेला: बृहस्पति, सूर्य, चंद्रमा और अन्य ग्रहों की एक दुर्लभ खगोलीय स्थिति बनने पर महाकुंभ का आयोजन होता है। यह स्थिति हर 144 वर्षों में एक बार बनती है।
कुंभ मेला: बृहस्पति जब कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मकर राशि में होता है, तब कुंभ मेले का आयोजन होता है।
महाकुंभ मेला: बृहस्पति, सूर्य, चंद्रमा और अन्य ग्रहों की एक दुर्लभ खगोलीय स्थिति बनने पर महाकुंभ का आयोजन होता है। यह स्थिति हर 144 वर्षों में एक बार बनती है।
कुंभ मेला: कुंभ मेला धार्मिक स्नान, साधु-संतों के प्रवचन, और अखाड़ों की शोभायात्रा का केंद्र होता है। यह धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
महाकुंभ मेला: महाकुंभ को धार्मिक दृष्टि से अधिक पवित्र और प्रभावशाली माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान संगम में स्नान करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और जन्म-जन्मांतर के पाप समाप्त हो जाते हैं।