Chintpurni Mata History ! चिंतपूर्णी में माँ का कौन सा भाग गिरा था? - Himachal Shaktipeeth Yatra

चिंतपूर्णी माता का इतिहास ! चिंतापूर्णी में माँ का कौन सा भाग गिरा था? - हिमाचल शक्तिपीठ यात्रा

माँ चिंतपूर्णी मंदिर का इतिहास हिंदी में

आज हम आपको करवाएंगे नैना देवी से 110 किमी दूर मां चिंतापूर्णी के धाम के दर्शन कराएंगे। हिमाचल प्रदेश के देवी देवताओं की भूमि है यहां के हर कोने में किसी ना किसी देवी देवता का मंदिर स्थित है | और हर मंदिर का अपना महत्व है | पृथ्वी में मुख्य 52 शक्तियाँ हैं जो मुख्य माता सती के ही रूप हैं | आज मैं आपको जिस देवी के तीरथ स्थल के बारे में बताने जा रहा हूँ | वो हिमाचल के ऊना जिले में स्थित है माता चिंतापूर्णी का मंदिर | चिंता पूर्णी यानी चिंता को दूर करने वाली माता | चिंतापूर्णी माता को छिन्नमस्तिका के नाम से भी जाना जाता है छिन्नमस्तिका का अर्थ है एक ऐसी देवी जो बिना सर के है | कहा जाता है इस स्थान पर माता सती के चरण थे...

चिंतपूर्णी-मंदिर-इतिहास

देखिये चिनपूर्णी में कौन सा भाग गिरा हुआ है ( चिंतापूर्णी में माँ का कौन सा भाग गिरा था )


ये कहानी तो आप सभी को पता है दोस्तों जब भगवान विष्णु द्वारा माता सती के अधजले शरीर को 52 श्रेणियों में विभाजित किया गया था तब वो हिसे पतितवी के अलग-अलग हसो में प्रसिद्ध थे, जो शक्ति पीठ के नाम से प्रसिद्द हुई थी, यहां मां सती के पैरो की पूजा प्रचलित है, मंदिर में एक वट वृक्ष है जिसमें माता का भव्य मंदिर स्थित है, मार्कंडेय पुराण के अनुसार ऐसी मान्यता है कि माता सती ने चंडी के रूप में दुष्टों को धारण कर दुष्टों को प्राप्त किया था, और इसी दौरान माता ने के दो शिष्य अजय और विजय ने माता से अपने शिष्यों के खून की प्यास शांत करने की बात कही थी तब माँ ने अपना सर कट कर अपने शिष्यों के खून की प्यास बुझाई थी तब माँ चिंतापूर्णी को छिन्नमस्तिका के नाम से भी जाना जाता है, माँ के दर्शन आज बहुत दूर से पता चलता है जो मां की भक्ति में सफल होता है और बेफिक्री से मां के चरण की सेवा का लाभ उठा रहा है |

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माता के मंदिर के पीछे एक साधना ग्रह भी बनाया गया है जहां मंदिर के दर्शन के बाद यहां माता की साधना और कर सकते हैं, बहुत से लोग यहां बैठे हुए लोगों को प्रसाद वितरण भी करते हैं और यहां पंजाबियों के द्वारा सेवा का कार्य किया जाता है। अधिकतर किया जाता है ,

लोगों की श्रद्धा

यहां बताया गया है कि अगर आप मां के मंदिर की छत पर सिक्के उछालते हैं और वो नीचे लटके हुए हैं तो आपका मंत पूरा हो गया है और वो सिक्के आप हमेशा अपने साथ रखेंगे तो आपके जीवन में कभी दुख नहीं होगा

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जब मां चिंतपूर्णी के दर्शन करने जाते हैं तब उनके सबसे बड़े भक्त ने इस कुंड का निर्माण कराया और उनके शिवलिंग के दर्शन भी किए, यह मंदिर 200 मीटर की दूरी पर स्थित है और यहां का वातावरण दिल को सार्वभौम देता है। हमने सबसे पहले भगवान शिव के लिंग के दर्शन और महाकाल कवच और शिव लिंग को जल संरक्षण प्रदान किया है, हम वहां भी जाते हैं और हमारे साथ हमेशा बने रहते हैं और हमको सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते रहते हैं।

चिंतपूर्णी मंदिर की खोज क्या थी?

चिंतपूर्णी मंदिर की खोज के पीछे भी एक अजब कहानी है, जिसमें कहा गया है मां ने चिंतपूर्णी के एक अखंड भक्त जैसा नाम माई दास था जो कि पैलेस के अथरनामी गांव के निवासी थे, अखंड श्रद्धा, भक्ति विचारधारा, और अखंड विश्वास से उन्होंने माता का दिल जीत लिया लिया गया, माई दास के दो भाई थे एक दुर्गा दास और देवी दास, माई दास की सारा समय पूजा पाठ में कहा गया था कि उन्होंने घर के कामो में काम समय दिया था और इसके करण उनके भाइयों को माई दास पर बेहद गुस्सा आता था , उनके परिवार वाले भी अपने परेशां हो गए और घर से बाहर कर दिया, एक दिन माई दास अपने मुसलमानों जा रहे थे रास्ते में थक गई और एक बरगद के पेड़ के नीचे वो आराम करने लगे और उनकी आंख लग गई, वही स्वप्न में माता के कक्ष में एक गांव में मेरी के दर्शन हुए, उन्होंने कहा कि माई दास ने इस व्रख के नीचे एक पिंडी स्थापित करो और उसकी पूजा करो, बाकी सारी रातें खतरे में पड़ जाएंगी, ये कथा ही माई दास की आंखें खुल गईं उसने सोचा ये एक सपना था और अपने आप से मुस्लिम चल दिया,

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वापसी से आने के बाद माई दास वहीं वृक्ष के नीचे गिर गए और मां की आराधना और मन में कहा कि हे मां अगर मैं आपकी सच्ची भक्त हूं, और मेरे शिष्य दिल से आपकी सेवा करी है तो मुझे एक बार फिर से बताएं दर्शन दो, तब माता ने दुर्गा का रूप धारण कर माई दास के दर्शन किए और कहां इस वृक्ष के नीचे तीसरे से विश्राम किया है, लोग समय के साथ मुझे भूल गए, तुमने मेरी यह एक पिंडी स्थापित कर दी मेरी करो और यही रह कर पूजा में करोफ़े राजवंश की रक्षा करुंगी, तब माँ ने कहा हे माँ यहाँ कैसे रहूँ यहाँ तो खाने के लिए कुछ भी नहीं है न पीने के लिए पानी, तब माँ ने माँ ने माँ को आशीर्वाद दिया की तुम जब यहाँ मेरी पिंडी स्थापित करो करोगे तो यहाँ से जल निकलेगा,

माई दास ने वैसा ही किया और महिमा फीट खोदा जहां से शिला और उस शिला के जैसा ही वहां पानी का तालाब बन गया, जिस वृक्ष के नीचे माई दास का सपना आया था वहां माता ने आज मंदिर स्थापित किया है और जहां से शिला वहां भगवान शिव का मंदिर और तालाब स्थित है

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