गोलू देवता घोड़े पर क्यों बैठते है ? Golu Devta story in Hindi

गोलू देवता घोड़े पर क्यों स्थित है? गोलू देवता की कहानी हिंदी में

गोलू देवता मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?


वैसे तो भारत में अनेको देवी देवता और भगवान है | और सभी की अपनी अलग-अलग मान्यता है, हर दुख और संकट हरने के लिए हमें देवताओ का आशीर्वाद मिलता है लेकिन सभी देवता ऐसे भी होते हैं जो मनुष्य का स्वरूप होते हैं और उनकी मृत्यु के बाद देव स्वरूप मिलते हैं जिससे वो जीवित लोगों के दुःख हरने के होते हैं काम आये ,

उन्ही में से एक है कुमाऊ के गोलू देवता जो कुमाऊ से निकलकर पूरे देश में प्रसीद हो गए, प्यासे न्याय के देवता माने जाते हैं, क्यूकी जो भी कुमाऊ के देवता अपने दर पर अपनी समस्या लेकर आए हैं अपनी समस्या गोलू देवता ने पल भर में बताई पूरी तरह से है, और सच में लोगों की शिकायतें यहां पूरी तरह से होती हैं इसका सबूत है यहां लगी लपलो घंटिया, जैसा भी मनो कामना करता है यहां आ कर पूरी तरह से होता है वो यहां एक घंटी बजाता है जिसकी वजह से गोलू देवता का मंदिर घंटियों वाला मंदिर बन गया . लेकिन यह देवता लोकप्रिय कैसे हुए? आइए जानते हैं,

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गोलू देवता कुमाऊ के राजा कहे जाते हैं, पूरे कुमाऊ में गोलू देवता ग्वेल या फिर गोलू देवता के नाम से प्रसीद है, उत्तराखंड के देवी देवता की भूमि है और हर जगह कोई न कोई देवता की वजह से वह स्थान प्रसीद है, और गोलू देवता तो साक्षात शिव का स्वरूप तो कहा जाता है लेकिन इन्होने धरती पर एक मनुष्य के रूप में जन्म लिया और अपना कर्म किया

गोलू देवता की कहानी (Golu Devta Story)

मन जाता है कि गोलू देवता कत्यूरी वंश के राजा झालराय और कलिंगा के संत थे, राजा की 7 रानियां उनके यहां से किसी के भी संत नहीं थे लेकिन सबसे आखिरी की संतान होने को हुई तो बाकी रानियों के मन में जलन की भावना आ गई थी उन्होंने सोचा कि इस बच्चे के जन्म के बाद रानी का बच्चा क्यों पैदा हुआ, और उन्होंने योजना बनाई, योजना के अनुसार ही रानी का बच्चा हुआ, उन्होंने उस बच्चे को एक पत्थर से बदल दिया और रानी को कहा की अपने एक पत्थर को जन्म दिया। है, ये दुखी राजा और रानी दोनों बहुत परेशान हैं, और चुपके से उन बाकी रानियों ने उस बच्चे को पानी में बहा दिया |

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लेकिन बच्चा बहते बहते एक नदी के किनारे जा पहुंचा जहां एक लकड़हारे ने उस बच्चे को देखा और घर ले आया उसका भी कोई संत नहीं था तो भगवान का आशीर्वाद समझ कर उसने उस बच्चे को पालने लगा, लेकिन उस लकड़हारे को ये दिखावा नहीं था ये बच्चा साक्षात् शिव का स्वरूप, धीरे-धीरे जब बच्चा 7 साल बड़ा हुआ तो उसे अपने जन्म की सदी की घटनाएं याद आ गईं, तो फिर उस बच्चे ने सीख-सीख की थाणी, टैब उस बच्चे ने अपने लकड़हारे पिता से घोड़े की माँग की लेकिन पिता गरीब था तो उसके बच्चे के लिए एक लकड़ी का घोड़ा बनाया गया और वह बच्चे को राजा के महल तक घोड़े ले गया |

गोलू देवता घोड़े पर क्यों स्थित है?



रानिया ने उसे नदी में कहां देखा था, वो नदी के किनारे कपडे धो रही थी, उस बच्चे ने राणियों से कहा कि मुझे अपने घोड़ों को पानी पिलाना है, रानिया उसे देख कर हंसी और उसकी नादानी समझ कर वह बच्चा कहाँ लकड़ी का घोड़ा भी कभी पानी पीता है क्या, तो बच्चे ने कहा हाँ मेरा घोड़ा पीता है, कुछ देर बाद तक यही बेहेस चला गया और रानिया में उस बच्चे को राजा के पास ले गया और कहाँ ये कबसे हमको परेशान कर रहा है की मुझे अपने लकड़ी के घोड़ों को पानी पिलाना है, तो राजा ने उस बच्चे को पुछा लकड़ी का घोड़ा पानी कैसे पिलाया जा सकता है, तब छोटे बच्चे ने कहा जैसे एक महिला एक पत्थर पैदा कर सकती है, यह सूरज कर राजा और सभी को रानी चौंक गईं

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तब उस छोटे से बच्चे ने अपनी पूरी कहानी बताई कि कैसे उसके साथ अन्याय हुआ और तुम्हारी रानियों ने मुझे नदी में बहा दिया और मेरी जगह एक पत्थर रख दिया।

बस इसी कारण से वो छोटा बच्चा हो कर गोलू देवता का नाम जाना गया और जो भी उसके नजदीकी न्याय की मूर्ति ले कर गोलू देवता के बारे में बताता है, उसके तारतम्य को दूर करते हैं, इसलिए जब भी आप कभी गोलू देवता के मंदिर और उनकी मूर्ति के बारे में जानेंगे। देखा तो वो घोड़े के ऊपर सवार होता है।

गोलू देवता की परिभाषा

दूर से लोग गोलू देवता के मंदिर में अपनी चिंता लेकर आते हैं और चिट्टी के जरिए दुख को दर्ज करके मंदिर में चढकर चले जाते हैं और जब उनका दुख या कष्ट दूर हो जाता है तो वह लोग अपनी श्रद्धा के अनुसार अपनी-अपनी घंटिया चड़ाते हैं। . ये सभी मंदिर हर जगह से अलग है क्यूकी यहां पर लगी घंटियों की सजावट आपके लिए एक नया अनुभव है |


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