कौन हैं नीम करोली बाबा?
बाबा नीम करोली बाबा के भक्तो में फेसबुक के मालिक मार्क ज़ुकरबर्क, ऐपल के मालिक स्टीव जॉब्स, जैसे अनगिनत विदेशी लोग भी हैं, पर नीम करोली बाबा कौन हैं आज हम इस ब्लॉग के माध्यम से जानेंगे।
नीम करोली बाबा क्यों प्रसिद्ध हैं?
नीम करोली बाबा एक ऐसे बाबा हैं, जिन्होंने 17 साल में ही ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी, बाबा नीम करोली हनुमान जी के भक्त थे पर लोग अजीब काल्पनिक हनुमान जी का अवतार मानते हैं, क्योंकि अपने जीवन काल में इन्होने ऐसे चमत्कार किए थे करना भी मनाए नहीं है, चाहे आप इसे चमत्कार कहो या माया लेकिन लोग बाबा नीम करोली को 20वीं सदी के महान संत बना चुके हैं, वैसे तो भारतीय लोगों का ऐसे संतो का भक्त बन ना आम बात है लेकिन भारत में सिद्धांत यह है कि यदि कोई विदेशी या भारतीय कोई हस्ती किसी संत को नियुक्त करता है तो आम लोग उस स्थान पर जाते हैं जहां भीड़ लगती है और सामान्य लोग मनुष्य लगते हैं और उनके बारे में जानने की इच्छा होती है और उस स्थान पर जहां भीड़ होती है तीन बड़े लोग गए और उनकी परेशानी दूर हुई,
बिल्कुल ऐसा ही था नीम करोली बाबा के साथ जब, विदेश से पहले स्टीव जॉब्स आए, फिर मार्क जुकरबर आए उनके बाद यहां और विदेशी लोगों का आना शुरू हुआ, ये बात भारत में फेसबुक तो भारत के लोगों ने भी वहां जाना शुरू किया, अब जहां एक छोटे से गांव में एक छोटा सा आश्रम था अब वह आश्रम एक धाम बन गया है और तीर्थ भारत से लोग उस जगह के दर्शन करने आते हैं जहां पर यह बहुत बड़े पैमाने पर लोग हैं।
बाबा नीम करोली का नाम क्या है?
बाबा नीम करोली का असली नाम लक्ष्मण दास था और उनका जन्म 1900 में उत्तर प्रदेश के अकबरपुर गांव में हुआ था, बाबा की शादी 11 साल पहले बाल आयु में हुई थी, उनकी दो बेटियां और एक बेटी भी 11 साल की उम्र में हुई थी धार्मिक ज्ञान की प्राप्ति हुई और 1958 में उन्होंने अपने घर को त्याग कर एक संत के रूप में अपने जीवन को समर्पित कर दिया, उन्होंने पूरे उत्तर भारत में संतो की तरह विचरण किया, यात्रा करते हुए उन्हें दांडी वाले बाबा के नाम से जाना,
नीम करोली बाबा का चमत्कार क्या है?
नीम करोली बाबा से जुड़े कई चमत्कार हैं जिनमे से एक ऐसा चमत्कार है जो आपके लिए खास है, इस घटना के कारण बाबा का नाम रखा गया है नीम करोली, बात करते हैं एक बार लक्ष्मण दस रेलवे में यात्रा कर रहे थे उनके पास टिकटों के पैसे नहीं थे तो टीटी ने उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद स्थित नीब करोली स्टेशन पर दस्तक दे दी, उसके बाद अपना बाबा चपटा गाड कर धरती पर बैठ गया, इसके तुरंत बाद ऑफिसों ने रेलवे स्टेशन का स्टॉक दिया गार्ड ने हर रेखा दिखाई दी, लेकिन अपनी जगह से इक इंच नहीं हिली, कुछ देर बाद जब बात अधिकारियो तक की गई तो मजिस्ट्रेट क्षेत्र और बाबा को देखा, मजिस्ट्रेट बाबा को जनता थी तो तुरंत ऑफिशल्स को बाबा से माफ़ी के शौकीन के लिए कहा और सा सम्मान जनक के सामने ताकत लगा दी, तो उसके बाद ट्रेन तुरंत चल पड़े, ये देख सब लोग अचंभित रह गए, तब से उनका नाम नीब करोली बाबा पड़ गया, धीरे-धीरे नाम अपभ्रंश होने फिर के करण उनका नाम नीम करोली पड़ गया गया .
नीम करोली बाबा की बुलेट प्रूफ कम्बल कहानी
1979 में रिचर्ड लैपर्ड ने बाबा के चमत्कारों पर एक किताब लिखी जिन्मे से एक सबसे बड़ा चमत्कार " ड्रीम कांबले" की बात कही। वैसे तो बाबा के बहुत सारे भक्त थे और उन्ही में से एक बुजुर्ग दंपत्ति थे एक दिन अचानक बाबा उनके घर पहुँच गए और जहाँ आज में यही रुक जाओगे, दोनों के खुशी का कोई आवाहन नहीं था उन्होंने बहुत बाबा की सेवा की उसके बाद बाबा अलग हो गए कम्बल ओड कर सो गया, उसके बाद सब सो गए रात को अचानक से बुजुर्ग दम्पत्तियों को बाबा के कराहने की आवाज आती रही, लेकिन उन्होंने बाबा को उभारने की हिम्मत नहीं की ऐसे लग रहा था मनो कोई मार रहा है, सुबह हुई और बाबा ने कम्बल को चक्र में लपेटा और दोनों को दिया और कहा कि इसे खोल कर मत देखना और गंगा में प्रवाहित कर देना, जैसे ही उन दोनों ने कम्बल को उठाया तो वो बहुत भारी था मनो उसके अंदर लोह भर गया, उनकी साक्षात् इच्छा हुई लेकिन बाबा ने कहा कैसे टाल दिया और उन्होंने उस कम्बल को उठाया और बिना देखे गंगा में प्रवाहित कर दिया,
इसके एक महीने बाद बुजुर्ग की बेटी फौजी की नौकरी से छुट्टी लेकर घर आ गई। वापस आने के बाद उसने ऐसी कहानी बताई जो किसी को समझ नहीं आई और विश्वास करने लायक भी नहीं थी, उसने बताया कि कुछ महीने पहले युद्ध में दुश्मनों ने घेर लिया था और उस पर सहयोगी गोलाबारी की थी लेकिन एक भी गोली उसके शरीर पर नहीं थी जैसे ही मनो ने उसके ऊपर कोई कवच रखा हुआ था, और आज रात जब बाबा उनके घर पर रुके थे। बाद में उन्होंने बाबा की इस माया को समझा और जाना बाबा रात भर क्यों करते रहे।
कैंची धाम की कहानी क्या है?
यह धाम अध्यात्मिकता का केंद्र है, यहां ग्यान लोग शांति का अनुभव करते हैं, बाबा नीब करोली 1961 में यहां आए थे पहले यह कैंची गांव था और यहां पर यह छोटा सा आश्रम था जिसका नाम कैंची रखा गया है यहां पर जो सड़क है उससे दूर देखें तो वह कैंची की तरह निरपेक्ष और तिरछी है, यहां 15 जून 1964 को बाबा ने अपने मित्र पूर्णानंद के साथ मिलकर इस आश्रम की स्थापना की थी। सबसे पहले यह स्थान कैंची आश्रम के नाम से जाना जाता था, और जब यहां लोगों का आना सबसे ज्यादा हुआ तब इस स्थान पर एक धाम में बदलाव हुआ, हर साल यहां 15 जून को स्थापना दिवस पर माया जाती है जहां से लोग दूर दूर से कैंची धाम आते हैं। है .
नीम करोली बाबा हनुमान जी के अभिन्न भक्त थे, ये थे उनके जीवन काल में 108 हनुमान मंदिरो की स्थापना