त्रिदेवो से सुनिए माँ चंद्रघंटा मां की कहानी : माता का तीसरा दिन

त्रिदेवो से सुनिए माँ चंद्रघंटा मां की कहानी : माता का तीसरा दिन

माँ चंद्रघंटा मां की कहानी 

माँ चंद्रघंटा माँ दुर्गा का एक स्वरूप है। नवरात्रि के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा अर्चना की जाती है। माता के मस्तिष्क पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र सुशोभित है। इसलिए माता को “माँ चंद्रघंटा” कहा जाता है। माता का यह स्वरुप अत्यंत शांतिदायक और कल्याणकारी है। माता चंद्रघंटा का देह स्वर्ण के समान चमकीला है। माता के दश हाथ है और दो हाथ अस्त्र और शस्त्र से सुशोभित है। माता का वाहन सिंह है। माता की मुद्रा युद्ध के लिए उध्वत रहने वाली है।

एक समय की बात है, पृथ्वी पर एक महिसासुर नामक दानव राज किआ करता था। यहाँ “महि” का अर्थ “भैंसा” होता है उसी प्रकार से “महिसासुर” का अर्थ जिसका वर्ण भैंसे जैसा है वैसा असुर। वो बड़ा ही शक्तिशाली और बलवान था। उसके शाशन में एक भी ऐसा असुर या देवता नहीं था जो उसका मुकाबला कर सके। एक दिन जब असुर गुरु शुक्राचार्य के परामर्श पर दानव सम्राट “महिषासुर” ने परम पिता ब्रह्मा की तपस्या की थी। 

 

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तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और मनोवांछित वर मांगने को कहा। वंही महिसासुर ने ब्रह्मा जी से अजय अमर होने का वर मांगा ज्योक़ी पृथ्वी पर जन्म लेने वाले हर जीव की मृत्यु निश्चित होती है ब्रह्मा जी ने उसे कोई और वर मांगने को कहा। महिसासुर ने बड़ी चतुराई से ब्रह्मा जी यह वर मांगा की उसकी मृत्यु किसी भी पुरुष से ना हो वो यह समजता था कि स्त्री प्रजाति पृथ्वी की सबसे कमजोर प्रजाति है। ब्रह्माजी ने उसकी ईच्छा को स्वीकारते हुए उसे उसका वर प्रदान किया। 

वर प्राप्त करते हुए उसने तीनो लोक में उत्पात मचाना शुरू कर दिया। उसने पाताल और पृथ्वी लोक पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया था। अब उसने स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर सभी देवताओ को परास्त कर दिया। ब्रह्माजी के वरदान से उसकी मृत्यु किसी भी पुरुष से नही होनी थी इसी वज़ह से त्रिदेव भी उसे मारने में असमर्थ थे। सभी देवता त्राहि होंकर त्रिदेव के पास इस समस्या का समाधान लेने पहुँचे। सभी देवताओं ने सारा वृतांत त्रिदेवों को सुनाया। 

वृतांत सुन त्रिदेव बहुत क्रोधित हुए और उनके मुख से एक तीव्र ऊर्जा बाहर आने लगीं और कुछ समय पश्चात एक देवी प्रकट हुई। उनकी दश भुजाएँ थी और मस्तिष्क पर अर्ध चंद्र धंटे के आकार से सुशोभित हो रहा था। सभी देवता माता के इस स्वरूप को देख चकित हो गये। महादेव ने अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने अपना चक्र उन्हें प्रदान किया। और इसीके चलते देवराज इंद्र ने अपना वज्र देवी को प्रदान किया और बारी बारी सभी देवताओं ने अपने अस्त्र शस्त्र देवी को प्रदान किये। देखते ही देखते माता का स्वरूप विकराल बनाता गया और माता “महिसासुर” का वध करने निकल पड़ी। 

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महिषासुर” और माता के बीच एक घमासान युद्ध हुआ। आकाश और पाताल हर जगा त्राहि त्राहि मच गई थी। एक के बाद एक सारे बड़े असुर मारे गए और अतः माता चंद्रघंटा ने विकराल असुर “महिसासुर” का वध भी कर दिया।

इस तरह माता ने देवताओं और मनुष्यों की रक्षा की और उन्हें महिषासुर जैसे दानव से बचाया।

माता चंद्रघंटा का जन्म कैसे हुआ था?

माँ चंद्रघंटा की उत्पत्ति कथा बहुत रमणीय है। कथा के अनुसार जब देवी सती ने अपने शरीर को यज्ञ अग्नि में जला दिया था, तब उसके पश्चात् उन्होंने पार्वती के रूप में पर्वतराज हिमालय के घर में पूर्व जन्म लिया। 

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माता चंद्रघंटा की पूजा विधि ;- 

पूजा स्थल को गंगाजल से स्वच्छ कर लें। फिर मां चंद्रघंटा के स्वरूप का स्मरण करते हुए उन्हें अक्षत और सिंदूर चढ़ाएं। इसके अलावा, माता को भूरे रंग के वस्त्र एवं कमल का फूल अर्पित करें। मां चंद्रघंटा को कमल के फूल का इत्र भी अर्पित कर सकते हैं। इसी के साथ आप माता को दूध से बनी खीर का भी भोग लगा सकते हैं।  

 

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