माता के पहले रूप (शैलपुत्री) की कहानी
मां शैलपुत्री की कहानी
मां शैलपुत्री सती के नाम से भी जानी जाती हैं। इनकी कहानी इस प्रकार है - एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ करवाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेज दिया, लेकिन भगवान शिव को नहीं। देवी सती भली भांति जानती थी कि उनके पास निमंत्रण आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वो उस यज्ञ में जाने के लिए बेचैन थीं, लेकिन भगवान शिव ने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि यज्ञ में जाने के लिए उनके पास कोई भी निमंत्रण नहीं आया है और इसलिए वहां जाना उचित नहीं है। सती नहीं मानी और बार बार यज्ञ में जाने का आग्रह करती रहीं। सती के ना मानने की वजह से शिव को उनकी बात माननी पड़ी और अनुमति दे दी।
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सती जब अपने पिता प्रजापति दक्ष के यहां पहुंची तो देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं और सिर्फ उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। उनकी बाकी बहनें उनका उपहास उड़ा रही थीं और सती के पति भगवान शिव को भी तिरस्कृत कर रहीं थीं। स्वयं दक्ष ने भी अपमान करने का मौका ना छोड़ा। ऐसा व्यवहार देख सती दुखी हो गईं। अपना और अपने पति का अपमान उनसे सहन न हुआ...और फिर अगले ही पल उन्होंने वो कदम उठाया जिसकी कल्पना स्वयं दक्ष ने भी नहीं की होगी।
सती ने उसी यज्ञ की अग्नि में खुद को स्वाहा कर अपने प्राण त्याग दिए। भगवान शिव को जैसे ही इसके बारे में पता चला तो वो दुखी हो गए। दुख और गुस्से की ज्वाला में जलते हुए शिव ने उस यज्ञ को ध्वस्त कर दिया। इसी सती ने फिर हिमालय के यहां जन्म लिया और वहां जन्म लेने की वजह से इनका नाम शैलपुत्री पड़ा।
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मां शैलपुत्री का वास काशी नगरी वाराणसी में माना जाता है। वहां शैलपुत्री का एक बेहद प्राचीन मंदिर है जिसके बारे में मान्यता है कि यहां मां शैलपुत्री के सिर्फ दर्शन करने से ही भक्तजनों की मुरादें पूरी हो जाती हैं। कहा तो यह भी जाता है कि नवरात्र के पहले दिन यानी प्रतिपदा को जो भी भक्त मां शैलपुत्री के दर्शन करता है उसके सारे वैवाहिक जीवन के कष्ट दूर हो जाते हैं। चूंकि मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ है इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। इनके बाएं हाथ में कमल और दाएं हाथ में त्रिशूल रहता है।
माता (शैलपुत्री) का जन्म कैसे हुआ था?
माता शैलपुत्री का जन्म सती के रूप में हुआ था, जो बाद में पर्वतराज हिमालय की पुत्री बनीं, इसलिए उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अपने पूर्व जन्म में ये सती के रूप में जानी जाती थीं और भगवान शिव की अर्धांगिनी थीं. उनके पिता, दक्ष प्रजापति, ने भगवान शिव का अपमान किया, जिससे आहत होकर सती ने स्वयं को यज्ञ की अग्नि में समर्पित कर दिया. इसके बाद, अगले जन्म में वे शैलपुत्री के रूप में जन्मी और पुनः भगवान शिव से विवाह किया।
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पूजन विधि :-
पूजा के समय सबसे पहले लाल वस्त्र धारण करें. इसके बाद घी का एक मुखी दीपक माता के समक्ष जलाएं और मां शैलपुत्री को लाल या सफेद फूल-फल अर्पित करें. साथ ही, मां को गाय के दूध का शुद्ध घी अर्पित करना चाहिए. इसके बाद देवी के मंत्र 'ऊं दुं दुर्गाय नम:' का जाप करें।